Kitna Sach Ye Ki Ye Jo Mein Hu – Hindi Poem
Kitna Sach Ye Ki Ye Jo Mein Hu – Hindi Poem
कितना सच ये कि,
ये जो मैं हूँ, मेरा वजूद वो है ?,
या है भी के नहीं !
जो दिखता है आईने में हू ब हू मेरे जैसा,
छाया है मेरी या आईने के अंदर मैं हूँ ?
ये दुनियां जो दिखती है इन नजरों से,
वो है यहाँ ?,
या प्रतिछाया है बस मेरे मन की क्यों कैद है ये दुनिया,
चारदीवारी जब दिखती नहीं !
जो दिखती है ये नजरें, क्यों अक्सर ये सच नहीं यहाँ
क्यों झूठलाती है ये नजरें, जो वाकई सच है यहाँ
एहसास क्यों नहीं सच का इस दुनियां को, क्यों भ्रमित है सब यहाँ
सिर यहाँ क्यों झुके हुए है, जब बोझ नहीं है सिर पर
एहसास जिनसे छल रहे है खुद को, वो झूठ है इस दुनियाँ का
एहसास जिनका ये सच मानते है, उनमे सच्चाई कितनी है ?
रिश्तों की कमी नहीं यहाँ, पर उनमे गहराई कितनी है?
कितनी सच है ये दुनियां और कितनी नहीं,
मैं अभी हूँ भी यहाँ, के कभी था भी या नहीं !
Kitna Sach Ye Ki Ye Jo Mein Hu – Hindi Poem
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