दोस्ती की महफ़िल सजे ज़माना हो गया, लगता है खुल के जिए ज़माना हो गया, काश कहीं मिल जाये वह काफिला दोस्तों का, अपनों से बिछड़े ज़माना हो गया
दोस्ती की महफ़िल सजे ज़माना हो गया, लगता है खुल के जिए ज़माना हो गया, काश कहीं मिल जाये वह काफिला दोस्तों का, अपनों से बिछड़े ज़माना हो गया
अपनी ज़िंदगी से मुझे हटाने चले हो, एक सताये हुए को सताने चले हो, कितने नादान हो तुम मेरे दोस्त, जो अपने हाथों की लकीरें मिटाने चले हो
उन फूलों से दोस्ती क्या करोगे जो एक दिन मुरझा जायेंगे करना है दोस्ती तो हम जैसे काँटों से करो जो एक बार चुभे तो बार-बार याद आएंगे
दोस्ती की महफ़िल सजे ज़माना हो गया, लगता है खुल के जिए ज़माना हो गया, काश कहीं मिल जाये वह काफिला दोस्तों का, अपनों से बिछड़े ज़माना हो गया
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