कुछ आख़िरी किरणें बची है उनको लुटा रहा हूँ, मैं सारा दिन जलने के बाद अब ढ़लने जा रहा हूँ.
कुछ आख़िरी किरणें बची है उनको लुटा रहा हूँ, मैं सारा दिन जलने के बाद अब ढ़लने जा रहा हूँ.
कभी कभी मैं ही निकल जाता हूँ खुद में से , खुद को अकेला चीख़ता हुआ छोड़कर ।
बैठा ना सके दो पल भी हमें अपने क़रीब हमारी मुफ़लिसियो में…. वो जो हमेशा हमें ‘ अपने ‘ होने का दावा किया करते थे …..
कुछ कहना चाहो तो अलफ़ाज़ ना मिलें.. आशिकों के साथ अक्सर ये इत्तेफ़ाक़ होता है..
तुमने होठों में समुन्दर क्या समेटा, सारा शहर पानी का प्यासा हो गया.
कभी अधूरा सा कुछ कहूँ, तो तुम पूरा समझ जाना, हम तो उलझे हैं तुमसे, तू कहीं हममें ना उलझ जाना.
इतनी दुनियादारी रख, चलने की तैयारी रख, काँधे के लिए काम आएँगे चन्द लोगों से यारी रख..!
मुस्कुरा उठा वो मेरा नाम सुनकर.. इतनी दूर गया था रिश्ता हमारा..!!
मोहबत क्या करेंगे वोह जो दुनिया भर से डरते है, हम तो वह परवाने है जो मो्हबत करके जलते है|
लोग रह गए इतराते अपनी चालाकियों पर वो समझ ही न पाये कि वो क्या गँवा बैठे हैं.
सुनो…!! रेशमी पर्दों से घर तो सजा लिया है मैनै…..! मगर…….!! चाबियाँ कहती है मुझको वो ही कमर चाहिए……!!
हँसते रहो, इसीलिए नहीं कि आपके पास हंसने का कारण है.. इसलिए क्योंकि..दुनिया को रत्ती भर फर्क नहीं पड़ता आपके आंसुओं से..!!
अब तो मिलावट का ज़माना है साहब.. आप कभी तो हमारी हां में हां मिला लिया करो..
ज़िन्दगी को सँवार दे मौला दिल में उनको उतार दे मौला उनके जलवों को देखने के लिए मुझको आँखें हज़ार दे मौला